Friday, August 30, 2013

संस्कार

    दिसम्बर की मीठी धूप में खड़े हो कर कुछ आराम मिल रहा था |इन दिनों सूर्य देवता भी अपनी अकड़ दिखाते हैं |  धुंध के कारण इनके दर्शन भी कम ही होते हैं | यूँ ही छत से नीचे की तरफ नज़र गई | देखा दो लड़के गली में अंदर की तरफ आ रहे थे | स्मार्ट पेंट कोट पहने हुए |उनमें से एक लड़का एकदम से हमारे दरवाज़े के पास रुक गया | उसने  पैरों में पड़ी हुई रोटी उठाई माथे से लगा कर पास में एक ऊँचे स्थान पर रख दी | जब ध्यान से देखा तो याद  आया ओह यह तो वही लड़का था जिसे मैंने रोटरी क्लब में वायलन बजाते हुए देखा था . वो विदेश से आये मेहमानों से फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहा था | आज उसका रोटी को माथे से लगाके ऊँची जगह पर रखना उसके संस्कारों का प्रतिबिम्ब था |मन ही मन उन माता पिता को सलाम किया कैसे उन्होंने अपने बेटे को आधुनिकता के साथ साथ अपनी संस्कृति से जोड़ रखा है|
                                                                                                  
                                                                                                 आज देख कर  मन पुलकित हो गया कि यह किताबी बातें नहीं हैं | संस्कार बच्चों  को घर से ही मिलते हैं |