तुझे कैसे कैसे पाला मैंने यह तू नहीं समझ पायेगी |जब तक समझेगी बहुत देर हो जायेगी | वो अपनी बेटी को समझा रही थी | यह दुनियां जितनी सीधी दिखाती है उतनी नहीं है | हर मोड़ पर लुभाने वाले मिलते हैं |दो चार घड़ी बिता के चलते बनते हैं | पर बेटी को कहाँ समझ आ रही थी माँ की बातें , वो कान बंद सुन रही थी | मन ही मन चिढ़ रही थी कि जब देखो उपदेश देती रहती है माँ | मै कोई बच्ची हूँ | बड़ी हो गई हूँ माँ को क्या पता
कौन से जमाने की बातें कर रही है माँ |
रानी का बोलना जारी था | तू घर से दूर रहती है देर सवेर बाहर मत निकला कर जमाना खराब है | और हाँ लड़कों बढ़कों के चक्कर से दूर ही रहना |हमारी संस्कृति यह नहीं है | उसकी बेटी मन ही मन मुंह बिचकाती माँ को सुन रही थी | पता था थोड़ी देर बाद जान छूट जायेगी |
माँ नसीहतों पे नसीहतें दिए जा रही थी | जैसे ही फोन बंद हुआ रानी की बेटी ने चैन की साँस ली| और बोली पता नहीं कब समझेंगे घर वाले रात दिन उपदेश यह मत करो वो मत करो उफ़ उसने फ़ोन पटका और दोस्तों के साथ जाने के लिए तैयार होने लगी |
फटाफट तैयार हो के दोस्तों के संग रात की पार्टी के लिए निकल पड़ी रानी की बेटी | नाच गाना मस्त महौल भाढ़ में जाएँ यह पुराने जमाने की सोच के लोग | दुनियां कहाँ की कहाँ पहुँच गई
और इनकी वही घिसी पिटी बातें | घर पे रानी दिल को तसल्ली दिए हुए की बेटी उसका कहा नहीं टालती |
संस्कारी है मेरी बेटी | ताउम्र के संस्कार कोई दिनों में नहीं बदल जाते | मैंने पूरी ज़िन्दगी इन बच्चों को पालने और अच्छे संस्कार देने में लगा दी | मेरे बच्चे कभी मुझे चोट नहीं पहुंचाएंगे | उन्होंने मुझे पल पल उनके लिए मरते देखा है | और बेटी अपने दोस्तों संग मस्त | दोनों अपने आप में अपनी अपनी जगह संतुष्ट |
कौन से जमाने की बातें कर रही है माँ |
रानी का बोलना जारी था | तू घर से दूर रहती है देर सवेर बाहर मत निकला कर जमाना खराब है | और हाँ लड़कों बढ़कों के चक्कर से दूर ही रहना |हमारी संस्कृति यह नहीं है | उसकी बेटी मन ही मन मुंह बिचकाती माँ को सुन रही थी | पता था थोड़ी देर बाद जान छूट जायेगी |
माँ नसीहतों पे नसीहतें दिए जा रही थी | जैसे ही फोन बंद हुआ रानी की बेटी ने चैन की साँस ली| और बोली पता नहीं कब समझेंगे घर वाले रात दिन उपदेश यह मत करो वो मत करो उफ़ उसने फ़ोन पटका और दोस्तों के साथ जाने के लिए तैयार होने लगी |
फटाफट तैयार हो के दोस्तों के संग रात की पार्टी के लिए निकल पड़ी रानी की बेटी | नाच गाना मस्त महौल भाढ़ में जाएँ यह पुराने जमाने की सोच के लोग | दुनियां कहाँ की कहाँ पहुँच गई
और इनकी वही घिसी पिटी बातें | घर पे रानी दिल को तसल्ली दिए हुए की बेटी उसका कहा नहीं टालती |
संस्कारी है मेरी बेटी | ताउम्र के संस्कार कोई दिनों में नहीं बदल जाते | मैंने पूरी ज़िन्दगी इन बच्चों को पालने और अच्छे संस्कार देने में लगा दी | मेरे बच्चे कभी मुझे चोट नहीं पहुंचाएंगे | उन्होंने मुझे पल पल उनके लिए मरते देखा है | और बेटी अपने दोस्तों संग मस्त | दोनों अपने आप में अपनी अपनी जगह संतुष्ट |