Friday, August 8, 2014

सफ़र

हम हरिद्वार रेलवे स्टेशन पे रेलगाड़ी के इंतज़ार में खड़े  थे | तभी गाड़ी आई और सभी भाग के गाड़ी मेंचढ़ गए | अपनी अपनी सीट ढूडने लगे | हम भी अपनी सीट पे बैठ गईं | हसी ठिठोली करने लगीं | हमारे साथ वाली बर्थ पर एक पति पत्नी बैठे हुए थे |  मेरा ध्यान रह रह कर उस तरफ जा रहा था | पति कभी पत्नी को पानी पिला रहा था तो कभी कुछ कभी कुछ | मुझे उनका इस उम्र में भी एक दुसरे के लिए प्यार देख हैरानी हो रही थी मैंने अपनी मित्र को कहा कि उधर देख पति कितना ध्यान रख रहा है अपनी पत्नी का |
                           जब पत्नी आराम करने के लिए आँखे बंद करती तो पति अंग्रेजी नॉवल पढ़ने लग जाता  |
उस औरत को देख मुझे ईर्ष्या सी होने लगी | वो लोग उम्र के 70 दशक  पार कर चुके थे शायद  | मेरा मन कर रहा था कि उनकी कुछ फोटो खीच के घर जा के अपने पतिदेव को दिखाऊ | एक आदर्श थे वो दोनों जैसे  |
कभी पति उसे शाल  उड़ाता कभी उसके पांव उठा कर उपर नीचे रख रहा था |  मैं बड़ी हैरान हो रही थी यह सब देख कर , क्यूंकि बहुत कम देखा  था  मैंने ऐसे लोगों को | ज्यदातर पति पत्नी पे रोब झाड़ते ही देखे हैं |
                                 मैं अपनी मित्र को बार बार उनकी हर बात बता रही थी  | हम लोग मजाक भी कर रहे थे
क्या  किस्मत पाई है इसने | कुछ गुर पूछ लेते हैं इनसे कि कैसे परस्पर इतना प्रेम है इनमें इस उम्र में भी | पति एकदम शांत भाव से उसका ध्यान रख रहा था |
                                                वो लोग भी देहली जा रहे थे | तभी पति किसी काम  से गया हुआ था शायद
शौचालय में | वो  औरत कराहने लगी एकदम से  | पहले तो हम झिजके  पर उसके चेहरे पर दर्द देख उठ कर  उनके पास गए . पूछने पर पता चला कि शायद टांग कि नस खीच गई थी | वो अपना पैर भी नहीं उठा  पा रही थी | हमारे पूछने पर उन्होंने मोज़े उतारने को कहा  | हमने उनके जूते उतारे और उँगलियाँ सहलाई | उन्होंने तो दुआओं का अम्बर लगा दिया ,  जब हमने उनकी नस में दर्द से कुछ  राहत दिला दी | हम लोग कहते रहे कि कोई बात नहीं यह तो हो जाता है कई बार | पर उनकी बात सुन हम लोग सन्न रह गए |
    उन्होंने बतया कि उन्हें  कैंसर है ,और  पता नहीं कितनी  बीमारियाँ थी | वो तो हमें कहने लगी कि आप लोग तो मेरे लिए भगवान  हो इस समय  | तभी उनके पति  आ गए और घबरा गए कि क्या हुआ |
 तब तक वो मोहतरमा काफी सहज हो चुकी थी |
                                         उफ़ इतने कष्ट में भी वो  लोग कितने सहज थे | हसी ठिठोली से एक दुसरे का दिल
बहला रहे थे | मुझे खुद पर ग्लानी हो रही थी कि हम लोग क्या  क्या बोल रहे थे | वो चेहरे आज भी मेरे दिलो दिमाग में वैसे ही सजीव हैं | घटना भी चलचित्र कि तरह मेरी आँखों के सामने आती रहती है |
कितना बड़ा सन्देश दे गए वो हमें कुछ घंटों के सफर में |हम लोग तो छोटी छोटी मुश्किलों से घबरा कर एक दुसरे पे दोषारोपण करने लग जाते हैं | मेरा प्रणाम है उन दोनों को  |भगवन करे उन दोनों का साथ बना रहे वो इसी तरह एक दुसरे का ध्यान रखते रहें  |