Saturday, October 5, 2013

माँ

माँ जब तू प्यार  वात्सल्य से मेरे सर पे हाथ रखती थी तो यूँ लगता था जैसे मैं सबसे सुरक्षित हूँ | मुझे डर नाममात्र भी नहीं महसूस होता था , सुकून में खो जाती थी | और पापा जब आते थे तो भाग के उनके गले में बाहें डाल झूल जाती थी    तो पापा के चेहरे पे जो भाव आते थे वो अब समझ आते हैं | अब तो चाह के भी वो सब नहीं कर पाती |
                        तुझसे ही मैंने माँ सयंम और सहनशीलता सीखी है | तूने ही सिखाया था नारी ममता का सागर होती है , तेरी ममता ने ही यह भाव दिए हैं मुझे |तूने ही सिखाया था की अगर कोई मर्यादा लांघे तो चंडी रूप धर लो |मैंने तो तुझ में ही  नौ रूप देखे हैं
                                         " प्यार का रूप "  माँ के रूप में तुम्हारा हमें दुलारना  | बहु के रूप में  सारे घर को इकठे रखना | कैसे दादी माँ का ध्यान रखना | बिन कहे उनकी हर बात समझ लेना |  हमें तो पता ही नहीं चलता था कि घर में क्या  हो रहा है | सब खुद अकेले ही झेलती रही माँ | घर में " शान्ति " स्वरूप तब तो नहीं पर अब समझ आता है | जब खुद उसी रूप को निभाती हूँ |
                                    "  तपस्वी " रूप  भी देखा है मैंने तेरा  | कैसे अकेली माँ तू हम चारों बहनों को अकेले संभालती थी जबकि पापा तो बहुत दूर दूसरे शहर में रहते  थे नौकरी के सिलसिले में |तुझसे ही सीख कर मैं नौकरी के साथ साथ  घर परिवार संभाल  पाई हूँ | रात दिन मेहनत करना तुझसे सीखा है मैंने |
                                                  माँ हर मुश्किल में हमें हिमालय की तरह दृढ़  रह कर उसका सामना करना सिखाया | " स्थिरता और दृढ़ता  " तेरा एक और रूप देखा था मैंने और तुझे देख कर हम में भी यह खुद वा खुद आ गया |इसी के कारण में शादी के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाई |  और अपने आप को आगे बढ़ा पाई |
                              माँ कैसे तू वक़्त पड़ने पर दुर्गा की तरह परिवार की रक्षा करती थी  | गांव में जब जमीन या कोई और मुसीबत आ पड़ती थी , तब " शक्ति " रूप भी अख्तियार कर लेती थी  और तुझे देख देख हम भी सीख गई की जरूरत पड़ने पे दुर्गा रूप भी नारी को धारण करना पड़ता है |
                                                                           सभी कहते थे की कैसे होगी इन लडकिओं  की शादी तब तुझमे  "आत्मविश्वास " दिखता था जिसके कारण हम आज अच्छे घरों में हैं   | आत्मविश्वास के कारण ही हम आज सुखी हैं अपने अपने घरों में |

                                                     
                                            

8 comments:

  1. माँ के हर रूप को सलाम ....

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  2. तुझे देख देख हम भी सीख गई की जरूरत पड़ने पे दुर्गा रूप भी नारी को धारण करना पड़ता है ....... आत्मविश्वास के कारण ही हम आज सुखी हैं अपने अपने घरों में ..
    सच कहा आपने माँ हमें शक्ति देती हैं और वह शक्ति हमारा आत्मविश्वास होता है ...
    नवरात्र के अवसर पर सुन्दर प्रस्तुति
    नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें
    सादर

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    1. धन्यवाद कविता जी
      हम जी आज हैं काफी हद तक माँ का प्रतिबिम्ब हैं

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  3. जीवन का सृजन --०--माँ
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
    पीड़ाओं का आग्रह---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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    1. धन्यबाद ज्योति खरे जी

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  4. maa ke aage kya kaha ja sakta hai yah shabd hi kafi hai ...aapki lekhni me bahut dam hai aasha ji ....prbhavit karti hai :)

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