माँ जब तू प्यार वात्सल्य से मेरे सर पे हाथ रखती थी तो यूँ लगता था जैसे मैं सबसे सुरक्षित हूँ | मुझे डर नाममात्र भी नहीं महसूस होता था , सुकून में खो जाती थी | और पापा जब आते थे तो भाग के उनके गले में बाहें डाल झूल जाती थी तो पापा के चेहरे पे जो भाव आते थे वो अब समझ आते हैं | अब तो चाह के भी वो सब नहीं कर पाती |
तुझसे ही मैंने माँ सयंम और सहनशीलता सीखी है | तूने ही सिखाया था नारी ममता का सागर होती है , तेरी ममता ने ही यह भाव दिए हैं मुझे |तूने ही सिखाया था की अगर कोई मर्यादा लांघे तो चंडी रूप धर लो |मैंने तो तुझ में ही नौ रूप देखे हैं
" प्यार का रूप " माँ के रूप में तुम्हारा हमें दुलारना | बहु के रूप में सारे घर को इकठे रखना | कैसे दादी माँ का ध्यान रखना | बिन कहे उनकी हर बात समझ लेना | हमें तो पता ही नहीं चलता था कि घर में क्या हो रहा है | सब खुद अकेले ही झेलती रही माँ | घर में " शान्ति " स्वरूप तब तो नहीं पर अब समझ आता है | जब खुद उसी रूप को निभाती हूँ |
" तपस्वी " रूप भी देखा है मैंने तेरा | कैसे अकेली माँ तू हम चारों बहनों को अकेले संभालती थी जबकि पापा तो बहुत दूर दूसरे शहर में रहते थे नौकरी के सिलसिले में |तुझसे ही सीख कर मैं नौकरी के साथ साथ घर परिवार संभाल पाई हूँ | रात दिन मेहनत करना तुझसे सीखा है मैंने |
माँ हर मुश्किल में हमें हिमालय की तरह दृढ़ रह कर उसका सामना करना सिखाया | " स्थिरता और दृढ़ता " तेरा एक और रूप देखा था मैंने और तुझे देख कर हम में भी यह खुद वा खुद आ गया |इसी के कारण में शादी के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाई | और अपने आप को आगे बढ़ा पाई |
माँ कैसे तू वक़्त पड़ने पर दुर्गा की तरह परिवार की रक्षा करती थी | गांव में जब जमीन या कोई और मुसीबत आ पड़ती थी , तब " शक्ति " रूप भी अख्तियार कर लेती थी और तुझे देख देख हम भी सीख गई की जरूरत पड़ने पे दुर्गा रूप भी नारी को धारण करना पड़ता है |
सभी कहते थे की कैसे होगी इन लडकिओं की शादी तब तुझमे "आत्मविश्वास " दिखता था जिसके कारण हम आज अच्छे घरों में हैं | आत्मविश्वास के कारण ही हम आज सुखी हैं अपने अपने घरों में |
तुझसे ही मैंने माँ सयंम और सहनशीलता सीखी है | तूने ही सिखाया था नारी ममता का सागर होती है , तेरी ममता ने ही यह भाव दिए हैं मुझे |तूने ही सिखाया था की अगर कोई मर्यादा लांघे तो चंडी रूप धर लो |मैंने तो तुझ में ही नौ रूप देखे हैं
" प्यार का रूप " माँ के रूप में तुम्हारा हमें दुलारना | बहु के रूप में सारे घर को इकठे रखना | कैसे दादी माँ का ध्यान रखना | बिन कहे उनकी हर बात समझ लेना | हमें तो पता ही नहीं चलता था कि घर में क्या हो रहा है | सब खुद अकेले ही झेलती रही माँ | घर में " शान्ति " स्वरूप तब तो नहीं पर अब समझ आता है | जब खुद उसी रूप को निभाती हूँ |
" तपस्वी " रूप भी देखा है मैंने तेरा | कैसे अकेली माँ तू हम चारों बहनों को अकेले संभालती थी जबकि पापा तो बहुत दूर दूसरे शहर में रहते थे नौकरी के सिलसिले में |तुझसे ही सीख कर मैं नौकरी के साथ साथ घर परिवार संभाल पाई हूँ | रात दिन मेहनत करना तुझसे सीखा है मैंने |
माँ हर मुश्किल में हमें हिमालय की तरह दृढ़ रह कर उसका सामना करना सिखाया | " स्थिरता और दृढ़ता " तेरा एक और रूप देखा था मैंने और तुझे देख कर हम में भी यह खुद वा खुद आ गया |इसी के कारण में शादी के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाई | और अपने आप को आगे बढ़ा पाई |
माँ कैसे तू वक़्त पड़ने पर दुर्गा की तरह परिवार की रक्षा करती थी | गांव में जब जमीन या कोई और मुसीबत आ पड़ती थी , तब " शक्ति " रूप भी अख्तियार कर लेती थी और तुझे देख देख हम भी सीख गई की जरूरत पड़ने पे दुर्गा रूप भी नारी को धारण करना पड़ता है |
सभी कहते थे की कैसे होगी इन लडकिओं की शादी तब तुझमे "आत्मविश्वास " दिखता था जिसके कारण हम आज अच्छे घरों में हैं | आत्मविश्वास के कारण ही हम आज सुखी हैं अपने अपने घरों में |
माँ के हर रूप को सलाम ....
ReplyDeleteधन्यवाद रंजना जी
Deleteतुझे देख देख हम भी सीख गई की जरूरत पड़ने पे दुर्गा रूप भी नारी को धारण करना पड़ता है ....... आत्मविश्वास के कारण ही हम आज सुखी हैं अपने अपने घरों में ..
ReplyDeleteसच कहा आपने माँ हमें शक्ति देती हैं और वह शक्ति हमारा आत्मविश्वास होता है ...
नवरात्र के अवसर पर सुन्दर प्रस्तुति
नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें
सादर
धन्यवाद कविता जी
Deleteहम जी आज हैं काफी हद तक माँ का प्रतिबिम्ब हैं
जीवन का सृजन --०--माँ
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in
धन्यबाद ज्योति खरे जी
Deletemaa ke aage kya kaha ja sakta hai yah shabd hi kafi hai ...aapki lekhni me bahut dam hai aasha ji ....prbhavit karti hai :)
ReplyDeleteThanks Upasna ji
ReplyDeleteFor inspiring