दिसम्बर की मीठी धूप में खड़े हो कर कुछ आराम मिल रहा था |इन दिनों सूर्य देवता भी अपनी अकड़ दिखाते हैं | धुंध के कारण इनके दर्शन भी कम ही होते हैं | यूँ ही छत से नीचे की तरफ नज़र गई | देखा दो लड़के गली में अंदर की तरफ आ रहे थे | स्मार्ट पेंट कोट पहने हुए |उनमें से एक लड़का एकदम से हमारे दरवाज़े के पास रुक गया | उसने पैरों में पड़ी हुई रोटी उठाई माथे से लगा कर पास में एक ऊँचे स्थान पर रख दी | जब ध्यान से देखा तो याद आया ओह यह तो वही लड़का था जिसे मैंने रोटरी क्लब में वायलन बजाते हुए देखा था . वो विदेश से आये मेहमानों से फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहा था | आज उसका रोटी को माथे से लगाके ऊँची जगह पर रखना उसके संस्कारों का प्रतिबिम्ब था |मन ही मन उन माता पिता को सलाम किया कैसे उन्होंने अपने बेटे को आधुनिकता के साथ साथ अपनी संस्कृति से जोड़ रखा है|
आज देख कर मन पुलकित हो गया कि यह किताबी बातें नहीं हैं | संस्कार बच्चों को घर से ही मिलते हैं |
आज देख कर मन पुलकित हो गया कि यह किताबी बातें नहीं हैं | संस्कार बच्चों को घर से ही मिलते हैं |
bahut sundar shiksha prad.. badhai
ReplyDeleteFhanyabad Meena ji
Deleteप्रेरणास्पद .. सत्य ही कहा संस्कार व्यक्तित्व में वो सब गुण ले आते हैं जो किताबों के माद्ध्यम से संभव नही ..
ReplyDeleteDhanyavad Viajy ji
DeleteBilkul sahi kaha aapne
Dhanyabad Viajay ji
ReplyDeleteBahut sunder...
ReplyDeleteThanks Rama
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