Sunday, March 23, 2014

समाज की दोहरी मानसिकता


सन 2004-2005

दिल्ली के एक स्कूल का एक स्कूली जोड़ा अन्तरंग लम्हों में था, लडके लडकी का विवादित विडिओ बना लिया ।

पूरे देश ने देखा, मीडिया में भी हलचल मची... इंटरनेट, मोबाइल प्रत्येक संभव स्थान पर उस विडिओ को देख देख कर उस लडकी का जाने किस किस ने क्या क्या संज्ञा दी ।

एक दिन ज्ञात हुआ कि उस लडकी के साथ साथ पूरा परिवार ही कनाडा चला गया...
जाता भी क्यों नही ?
लडकी का जो बलात्कार उन क्षणों में वो लड़का नही कर पाया वो बाद में पूरे समाज ने किया ।
शर्मसार होकर उन्हें जाना पड़ा...
जबकि दोषी तो यह समाज था ।

दो साल पहले कनाडा से एक पेशेवर समलेंगिक लडकी (मर्यादित या अमर्यादित भाषा में आप कोई भी नाम दे सकते हैं ) आई, कई लोग उसको पोर्न स्टार बोलते हैं, फिर भी उसको इस देश के इस समाज ने सर आँखों पर बिठाया ।

आज कपिल शर्मा के कामेडी नाइट्स में भी उसे बुलाया गया ।

सनी लियोन को संभवत: आज की युवा पीढ़ी नेट पर सर्च करके वो सब भी देखते होंगे जो शायद अभी उनकी आयु की परिभाषा और मर्यादा में नही आता ।

 स्कूल की उस लडकी से भले ही बदलती आयु में एक गलती या अपराध हुआ पर वो शायद कभी सनी लियोन जैसी पेशेवर जैसे नीच या घृणित कार्य न करती ।

गलती किसकी ??

स्कूल के मामले में भी ये समाज ही दोषी था जिसने एक बच्ची को वेश्या तक की संज्ञाओं से सम्बोधित किया ।

और सनी लियोन के मामले में भी ये समाज ही दोषी है जो जानते समझते हुए भी एक वेश्या को फिल्मो, टेलीविजन आदि में उपयोग भी कर रहे हैं और सर माथे भी चढ़ा रहे हैं ।

बुद्धिजीवी के रूप मइ मीडिया चैनलों पर यही फिल्म इंडस्ट्री और टेलीविजन के लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं ... बलात्कार मुक्त समाज की
... तो दूसरी और पैसे कमाने की चाह में लोगों को वासना परोसने की दौड़ में हर नीच से नीच काम करने को तैयार हैं ।

इसके विपरीत समाज में रहने वाले लोगों में वासना और उसके प्रति आसक्ति भी दोषी है ...
परन्तु इस सत्य को स्वीकार करके ...
अपनी गिरेबान में झाँक कर कोई भी अपने आचरण की गिरावट और नैतिक पतन को उत्तरदायी नही ठहराएगा ।

Friday, March 7, 2014

यह रिश्ते

              यूँ ही आज जिगर में हूक सी उठी
                क्या यही हमारे जिगर के टुकड़े हैं
              जिन्हें  हमारी हर बात यूँ ही लगती है
              पढ़ा था सुना था भुगत अब रहे हैं
               आज समझ आई पुरानी कहावत
                 "इंसान अपनी औलाद से हारता है "
                 कई बार सीना छलनी हो चुका है
                  कहाँ गए वो नन्हे हाथ
                  जो ऊँगली थामे चलते थे
                   कहाँ गया वो  प्यार जो पल्लू
                               थामे चलता था
                  वक़्त बदल गया या हम ठहर गए हैं
                  बड़े अजीब भंवर में फंस गए हैं
                   वो बचपन अच्छा था
                    जब दुआएँ मांगती  माँ
                  हर दुःख खुद के लिए मांग लेती थी
                यह कैसे रिश्ते हैं जो समझ से बहर हैं